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विक्रम संवत: हिंदू नववर्ष की उत्पत्ति और ऐतिहासिक महत्व
विक्रम संवत: हिंदू नववर्ष की उत्पत्ति और ऐतिहासिक महत्व
Posted on 30 March 2025 | by Astro Star Talk
कैसे हुई हिंदुओं के नए साल की शुरुआत? कब और कैसे शुरू हुआ विक्रम संवत?
हिंदू नववर्ष का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। यह सिर्फ एक तिथि का परिवर्तन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहराई से जुड़ा हुआ विषय है। हिंदू पंचांग के अनुसार, नववर्ष विभिन्न संवतों के आधार पर मनाया जाता है, जिनमें प्रमुख रूप से विक्रम संवत और शक संवत शामिल हैं। इस लेख में हम विक्रम संवत के इतिहास, इसकी उत्पत्ति और इसके महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
विक्रम संवत का प्रारंभ
विक्रम संवत की स्थापना सम्राट विक्रमादित्य ने की थी। ऐतिहासिक संदर्भों के अनुसार, यह संवत 57 ईसा पूर्व में प्रारंभ हुआ था। इस संवत को सम्राट विक्रमादित्य की पराक्रम और विजय की स्मृति में आरंभ किया गया था। ऐसा माना जाता है कि विक्रमादित्य ने उज्जैन से शकों को पराजित कर अपना साम्राज्य स्थापित किया और उसी विजय की याद में विक्रम संवत की शुरुआत हुई।
विक्रम संवत का गणना प्रणाली
विक्रम संवत चंद्र-सौर पंचांग पर आधारित है, जिसका तात्पर्य यह है कि इसमें महीनों की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है, जबकि वर्षों की गणना सूर्य की गति के आधार पर होती है। इस प्रणाली के अनुसार हिंदू नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। यह दिन वसंत ऋतु के आगमन और नवरात्रि के पहले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
विक्रम संवत का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टिकोण: विक्रम संवत की शुरुआत को अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है, जिसमें देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इसके अलावा, इस दिन को भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना का दिन भी माना जाता है।
सांस्कृतिक महत्व: विक्रम संवत के अनुसार हिंदू समाज अपने धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों का आयोजन करता है। इस संवत का प्रयोग विभिन्न मंदिरों में तिथियों की गणना, पंचांग निर्माण, और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता है।
राजनीतिक महत्व: भारत के कई राज्यों में सरकारी तिथियों की गणना विक्रम संवत के आधार पर की जाती है। नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर भी विक्रम संवत पर आधारित है।
विक्रम संवत और अन्य संवतों में अंतर
विक्रम संवत (57 ईसा पूर्व): सम्राट विक्रमादित्य द्वारा स्थापित, यह चंद्र-सौर पंचांग पर आधारित है।
शक संवत (78 ईस्वी): राजा कनिष्क द्वारा आरंभ किया गया और भारत सरकार द्वारा आधिकारिक संवत के रूप में मान्यता प्राप्त।
हिजरी संवत (622 ईस्वी): इस्लामिक पंचांग का आधार, चंद्र कैलेंडर पर आधारित।
ग्रेगोरियन कैलेंडर (1582 ईस्वी): वर्तमान में वैश्विक स्तर पर प्रचलित ईसाई कैलेंडर।
निष्कर्ष
विक्रम संवत सिर्फ एक कालगणना पद्धति नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। सम्राट विक्रमादित्य की विजयगाथा को अमर बनाने के लिए प्रारंभ किया गया यह संवत आज भी हिंदू धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हिंदू नववर्ष के रूप में मनाने की परंपरा भारतीय सभ्यता की महानता और प्राचीनता को दर्शाती है। विक्रम संवत न केवल एक तिथि प्रणाली है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।