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कृष्ण जन्माष्टमी 2025

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कृष्ण जन्माष्टमी 2025

Posted on 19 August 2025 | by Astro Star Talk

कृष्ण जन्माष्टमी 2025: माखनचोर के अंदाज़ में, खुश रहिए और झूमिए!

कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे श्रीकृष्ण जयंती या गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। वर्ष 2025 में यह शुभ अवसर शनिवार, 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन भक्तजन उपवास रखते हैं, विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और श्रीकृष्ण के बाल रूप 'माखनचोर' का स्मरण कर आनंदित होते हैं।


कृष्ण जन्माष्टमी 2025 के शुभ मुहूर्त

  • जन्माष्टमी तिथि प्रारंभ: 16 अगस्त 2025, शनिवार, प्रातः 09:31 बजे
  • जन्माष्टमी तिथि समाप्त: 17 अगस्त 2025, रविवार, प्रातः 11:01 बजे
  • निशीथ पूजा समय (सबसे महत्वपूर्ण): 16 अगस्त 2025, रात्रि 23:55 से 17 अगस्त 2025, प्रातः 00:41 तक
  • व्रत पारण समय: 17 अगस्त 2025, प्रातः 11:01 के बाद
  • अष्टमी तिथि: 16 अगस्त 2025
  • रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 16 अगस्त 2025, प्रातः 01:09 बजे
  • रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 17 अगस्त 2025, प्रातः 01:35 बजे

कृष्ण के बाल स्वरूप से जुड़ी मनमोहक कहानियाँ

भगवान कृष्ण का बाल्यकाल लीला और माखनचोरी की घटनाओं से भरा हुआ है। जन्माष्टमी पर इन कहानियों को सुनना और सुनाना परंपरा का हिस्सा है।

1. माखनचोर लीलाएँ

कृष्ण को बचपन से ही माखन अत्यंत प्रिय था। वे ग्वाल-बालों के साथ मिलकर गोकुल की गलियों में घूमते और घर-घर में रखे दही-माखन को चुपचाप निकालकर खा जाते। कई बार वे माखन अपने मित्रों और बंदरों को भी बाँट देते थे। यही कारण है कि उन्हें माखनचोर कहा जाने लगा।

2. माखन हांडी फोड़ना

कृष्ण की शरारतों से परेशान गोकुल की गोपियों ने माखन के मटके ऊँचाई पर लटकाना शुरू कर दिया। लेकिन नटखट कृष्ण और उनके मित्रों ने मानो हार मानना सीखा ही नहीं। वे एक-दूसरे के कंधों पर चढ़कर माखन के मटके तक पहुँचते और उसे फोड़कर माखन खाते। यही परंपरा आज भी दही-हांडी उत्सव के रूप में मनाई जाती है।

3. गोपियों की शिकायतें

गोकुल की गोपियाँ अक्सर कृष्ण की शिकायत यशोदा माता से करती थीं कि आपका लाल हमारे घरों का माखन चुरा लेता है। जब-जब यशोदा ने कृष्ण को डाँटना चाहा, तब-तब उनके भोले चेहरे और मधुर वचनों ने सबका मन मोह लिया। यही बाल स्वरूप हमें निष्कपटता, आनंद और बालसुलभ स्वभाव की प्रेरणा देता है।


पूजा-विधि और व्रत-विधान

  1. व्रत प्रारंभ: भक्तजन प्रातः स्नान कर संकल्प लें और दिनभर उपवास करें।
  2. पूजन सामग्री: धूप, दीप, पुष्प, तुलसी दल, माखन-मिश्री, पंचामृत, शंख, घंटा।
  3. मंदिर सजावट: भगवान कृष्ण की मूर्ति या झांकी को पालना और फूलों से सजाएँ।
  4. निशीथ पूजन: रात में बारह बजे के समय श्रीकृष्ण जन्म की प्रतीकात्मक पूजा करें।
  5. आरती और भजन: श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन करें और प्रसाद बाँटें।
  6. व्रत पारण: अगले दिन प्रातः 11:01 बजे के बाद व्रत का पारण करें।

ज्योतिषीय महत्व

श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि को हुआ था। ज्योतिषीय दृष्टि से यह संयोग अत्यंत दुर्लभ और शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से मनुष्य के जीवन से पाप-क्लेश दूर होते हैं और सुख-समृद्धि तथा शांति प्राप्त होती है। यह समय विशेष रूप से चंद्र और बुध ग्रह को संतुलित करने के लिए शुभ माना जाता है।


ध्यान साधना – Power-Shift Mandala

इस जन्माष्टमी पर एक विशेष ध्यान साधना की जा सकती है जिसे “Power-Shift Mandala” कहा जाता है। इसमें ध्यान के दौरान भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप का चिंतन करते हुए माखन के प्रतीक स्वरूप शुद्धता और आनंद का अनुभव किया जाता है। यह ध्यान साधना व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाती है।


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