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वराह जयंती 2025
वराह जयंती 2025
Posted on 23 August 2025 | by Astro Star Talk
भगवान विष्णु के वराह अवतार का महत्व, कथा और पूजा विधि
वराह जयंती क्या है?
वराह जयंती हिंदू धर्म का एक पावन पर्व है, जो भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार की स्मृति में मनाया जाता है। जब असुर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी (भूदेवी) को समुद्र में डुबोकर ब्रह्मांडीय संतुलन को बिगाड़ दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह (शूकर) रूप धारण करके पृथ्वी का उद्धार किया। इस दिव्य कृत्य को स्मरण करने और धर्म की रक्षा के प्रतीक के रूप में यह उत्सव मनाया जाता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि जब भी अधर्म, अराजकता और अन्याय बढ़ता है, तब ईश्वर अवतार लेकर धर्म और सत्य की रक्षा करते हैं।
वराह जयंती 2025 की तिथि और मुहूर्त
तिथि: मंगलवार, 26 अगस्त 2025
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वराह जयंती मुहूर्त: 01:07 PM से 03:39 PM (अवधि – 2 घंटे 33 मिनट)
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तृतीया तिथि प्रारंभ: 25 अगस्त 2025 को दोपहर 12:34 बजे
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तृतीया तिथि समाप्त: 26 अगस्त 2025 को दोपहर 01:54 बजे
वराह अवतार की कथा
पुराणों के अनुसार, हिरण्याक्ष नामक असुर ने तपस्या करके अपार शक्ति प्राप्त की और त्रिलोक पर आतंक मचाना शुरू कर दिया। उसने पृथ्वी को अपने बल से जलमग्न कर दिया और समुद्र की गहराई में छिपा दिया।
तब ब्रह्मांड में अराजकता फैल गई और सभी देवता संकट में आ गए। भगवान विष्णु ने पृथ्वी माता (भूदेवी) की रक्षा हेतु वराह रूप धारण किया।
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वराह रूप में भगवान का शरीर विशालकाय और शक्ति से परिपूर्ण था।
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उन्होंने समुद्र की गहराई में जाकर हिरण्याक्ष से भीषण युद्ध किया।
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लम्बे युद्ध के बाद भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया।
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तत्पश्चात, उन्होंने अपनी दंती (दाँत/दंत) पर पृथ्वी को उठाकर पुनः ब्रह्मांडीय कक्षा में स्थापित कर दिया।
यह कथा धर्म की पुनर्स्थापना, अच्छाई की विजय और दिव्य करुणा का अद्वितीय उदाहरण है।
वराह जयंती की पूजा विधि और व्रत
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प्रातः स्नान कर संकल्प लें और व्रत का आरंभ करें।
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भगवान विष्णु और वराह स्वरूप की पूजा करें।
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पूजा में तुलसी दल, चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
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विशेषतः कमल पुष्प, चंदन, शहद, दूध, घी, और धान्य (अन्न) अर्पण करना शुभ माना जाता है।
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"अभिषेक" (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल से स्नान) का विशेष महत्व है।
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व्रतधारी दिनभर फलाहार करें और संध्या समय कथा-पाठ और आरती करें।
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गरीबों व जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दान अवश्य दें।
वराह जयंती व्रत की कथा (व्रत कथा पाठ हेतु संक्षेप)
एक समय हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को पाताल सागर में छिपाकर देवताओं को परास्त कर दिया। तब ब्रह्मांड में संकट छा गया। भगवान विष्णु वराह रूप में अवतरित हुए। उन्होंने तीन पगों में समुद्र पार किया और हिरण्याक्ष से युद्ध किया। युद्ध में भगवान ने दैत्य का वध कर दिया और भूदेवी को अपने दाँतों पर धारण कर पुनः समुद्र से बाहर निकालकर आकाश में स्थापित किया। इस प्रकार, संसार में पुनः धर्म की स्थापना हुई।
वराह जयंती का महत्व और फलश्रुति
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इस व्रत को करने से संतान सुख, ऐश्वर्य और धर्म की प्राप्ति होती है।
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गृह क्लेश, पितृ दोष और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
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दांपत्य जीवन में सामंजस्य और स्थिरता आती है।
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जो जातक यह व्रत श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
वराह अवतार से जुड़ी दुर्लभ मान्यताएँ
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कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, पृथ्वी माता (भूदेवी) भगवान विष्णु की पत्नी बनीं।
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वराह और भूदेवी का विवाह ब्रह्मांडीय संतुलन और सृष्टि की निरंतरता का प्रतीक माना जाता है।
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शास्त्रों में वर्णन है कि वराह का शरीर ही यज्ञमय है – उनकी श्वास वेदों की ऋचाएँ, उनकी आँखें सूर्य-चंद्र और उनके रोम यज्ञ की आहुति मानी गई है।
वराह जयंती पर मंत्र और स्तोत्र
वराह मंत्र
👉 "ॐ नमो भगवते वराहाय भूतपतये भूभरणाय स्वाहा।"
इस मंत्र का जाप करने से संकट दूर होते हैं और जीवन में स्थिरता आती है।
वराह स्तुति (भागवत पुराण से)
नमस्ते देवदेवेश नमस्ते पृथिवीधर।
नमस्ते सृष्टिसंहार कारणाय नमोऽस्तु ते॥दंष्ट्राग्रेण धरां कृत्स्नां यः समर्थो धरो ह्यजः।
तस्मै नमो वराहाय विष्णवे श्रीनिधये नमः॥
आध्यात्मिक महत्व
वराह जयंती हमें यह संदेश देती है कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, तब-तब ईश्वर अवतार लेकर धर्म की रक्षा करते हैं।
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यह पर्व साहस, धर्म, करुणा और रक्षा का प्रतीक है।
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यह उत्सव दान, सेवा, उपासना और समुदायिक एकता को प्रोत्साहित करता है।
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वराह अवतार हमें यह भी स्मरण कराता है कि पृथ्वी (भूदेवी) हमारी माता है और उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है।
एस्ट्रो स्टार टॉक के विचार:
वराह जयंती केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं बल्कि ईश्वर की उस करुणा और शक्ति की स्मृति है जो संसार को अधर्म और विनाश से बचाती है। भगवान विष्णु का यह अवतार हर भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि धर्म और सत्य की हमेशा विजय होती है।